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आसिफा ने लिखा निर्भया को खत.

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तुम कहां हो दीदी मैं तुम्हें ढूंढ रही हूं क्योंकि मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं किससे अपना दर्द कहूं। हम सगी बहनें तो नहीं लेकिन हमारे बीच दर्द का रिश्ता है। इसलिए मैं तुम्हीं से कहती हूं। दीदी 16 दिसंबर 2012 को तुम्हें 6 लोगों ने कुचला। तुम चली गईं तो खूब शोर हुआ। लगा कि अब लड़कियों के लिए ये देश ज्यादा सेफ होगा। लेकिन दीदी ऐसा नहीं हुआ। देखो तुम्हारे जाने के 6 साल बाद मेरे साथ क्या हुआ? दीदी मैं सिर्फ आठ साल की हूं। मेरा नाम आशिफा है। मेरा घर जम्मू में कठुआ जिले के रसाना गांव में है। दीदी मैं अपने घोड़े को ढूंढते-ढूंढते इंसान के रूप में जानवर के चुंगल में फंस गई। इन लोगों ने मुझे एक कमरे में बंद कर दिया दीदी। फिर लोग आते गए और मुझ पर जुल्म करते रहे। वो आठ लोग थे। दीदी मुझे बहुत दर्द हुआ। खाली पेट मुझे ये लोग कोई नशीली दवा देते थे। दीदी जो लोग आते थे उनमें पुलिस वाले भी थे। इनमें से एक पुलिस वाला तो वो था जिसे मुझे ढूंढने के लिए लगाया गया था। मुझ नन्हीं सी जान को कुचलने के लिए इन लोगों ने यूपी के मेरठ से भी किसी को बुला लिया। दीदी मुझमें जान तो बची नहीं थी फिर ये लोग मुझे मारने के

Asifa Ka Dard

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सह सह के दर्द ज़खमो से चूर  हो जाऊंगी  मुझे क्या पता मैं इतनी मशहूर हो जाऊंगी  जालिमों के जुल्म  का बन जाऊंगी शिकार  मैं जानवरों की हवस का दस्तूर हो जाऊंगी  मुझे क्या पता मैं इतनी मशहूर हो जाऊंगी अम्मी से  मैंने यह एक रोज कहा था  देखना बड़े हो के मैं  हूर हो जाऊंगी  मुझे क्या पता मैं इतनी मशहूर हो जाऊंगी  अम्मी तेरी आंखों का नूर छिन गया  उम्मीद नहीं थी इतनी तुमसे दूर हो जाऊंगी  मुझे क्या पता मैं  इतनी मशहूर हो जाऊंगी  यह तो सोचा था अब्बू मेरी डोली सजाएंगे  अब उन्हीं के हाथों दाखिले कबूर हो जाऊंगी  मुझे क्या पता मैं इतनी मशहूर हो जाऊंगी एक बार मुझे आकर आगोश में लो अब्बू वादा करती हूं फिर कभी बाहर नहीं जाऊंगी मुझे क्या पता मैं इतनी मशहूर हो जाऊंगी ऐ वक्त के हाकिम मुझे इंसाफ दो वरना कहरे खुदा का फर्श पर ज़हूर हो जाऊंगी  मुझे क्या पता मैं इतनी मशहूर हो जाऊंगी आसिफा  और उन्नाव की उस बेटी और उनके बर्बाद हुए परिवार की खामोश आवाज।